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भाषा विभाग के अधीन उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान द्वारा संचालित संस्कृतशिक्षण एवं पाठ्यक्रम निर्माण योजना के अंतर्गत संचालित ऑनलाइन संस्कृतभाषाशिक्षण योजना के अंतर्गत गीता गौरव आधृत्य बौद्धिक सत्र का शुभारम्भ प्रशिक्षु विवेक ने वैदिक मंगलाचरण से किया। मीना शाह ने सरस्वती वन्दना की। सत्र का संचालन कक्षा छः की प्रशिक्षु मन्त्रिता ने किया। संस्थान गीतिका अशोक ने प्रस्तुत की। स्वागत भाषण व अतिथि परिचय प्रशिक्षिका डॉ० श्वेता बरनवाल ने किया। प्रशिक्षु सोनम ने सुमधुर स्वागतगीत गाकर कार्यक्रम को संस्कृतमय कर दिया। प्रशिक्षु लावण्या और कुमुद ने गीता के श्लोकों की अन्ताक्षरी प्रस्तुत की। प्रशिक्षु चित्रा ने गीता श्लोक वाचन व श्लोक समीक्षा की। मुख्य अतिथि संस्कृतानुरागी, राष्ट्रप्रेमी डॉ० मञ्जूषा पंढरीनाथ कुलकर्णी ने संस्कृत भाषा की रोचकता व विशेषता को प्रतिपादित किया। उन्होंने संस्कृत के गौढ़ और सरल प्रारूपों के भेद स्पष्ट कर प्रशिक्षुओं को संस्कृत के प्रति कर्तव्यनिष्ठ होने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बताया की विश्व का कोई भी देश चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर नहीं गया हमारे शास्त्रों और वेदों की सहायता से भारतीय वैज्ञानिकों ने इस क्लिष्ट कार्य को प्रतिपादित किया। भगवद्गीता की विशेषताओं को बताते हुए मुख्य-अतिथि ने कहा की गीता विविध अलंकारों छन्दों इत्यादि से सुशोभित ग्रन्थ है। आज भी गीता परम रहस्यपूर्ण ग्रन्थ के रूप में मानव दर्शन का कल्पवृक्ष है। विश्व में अन्य भाषाओं में सबसे अधिक अनुवाद गीता का ही किया गया है। इस पवित्र ग्रन्थ का प्रयोग आज भी न्यायालय में किया जाता है। सबसे पहले मातृभूमि की कल्पना अथर्ववेद के अनुसार भारतवर्ष में ही हुई। विश्वपटल पर भारत का स्वरूप और योगदान को बताते हुए सम्पूर्ण भारतवासियों को निज कर्तव्य हेतु जागने का आह्वान किया। सत्र के अन्त में प्रशिक्षिका अनीता वर्मा ने समागतों का धन्यवाद ज्ञापित किया। प्रशिक्षक महेन्द्र मिश्रा ने तकनीकी सहायता प्रदान की। कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के निदेशक विनय श्रीवास्तव, डॉ. दिनेश मिश्र(प्र. अधिकारी), सर्वेक्षिका डॉ. चंद्रकला शाक्या , प्रशिक्षण प्रमुख सुधीष्ठ मिश्र, समन्वयकगण धीरज मैठाणी, दिव्य रंजन तथा राधा शर्मा, अनिल गौतम, संस्थान प्रशिक्षक नागेश दुबे, ओमदत्त, अनीता पाण्डेय व अन्य सामाजिक जन ऑनलाइन माध्यम से समुपस्थित थे।

-डॉ० श्वेता बरनवाल

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