आजमगढ़। 1 जनवरी 2021 श्मशान राजघाट आजमगढ़ में लाल बिहारी मृतक ने कहा कि 7 जनवरी 2021 को रिलीज होने वाली कागज़ फिल्म के निर्देशक श्री सतीश कौशिक भाई-भाई कहकर विश्वासघात कर दिए। एग्रीमेंट की कॉपी मांगने पर भड़क गए। मेरे साथ धोखाधड़ी, चार सौ बीसी कर इंग्लिश में लिखे पेपरों पर फिल्म बनाने के नाम पर मेरे जीवित मृतक के संघर्षो को आजीवन फर्जी नोटरी बयान हलफी पर हस्ताक्षर कराकर मौलिक अधिकारों की हड़पने, बधुआ मृतक बनाकर, अतिक्रमण कर, मानव अधिकारों का हनन करने, नीच, लालची, अछूत, ब्लैकमेलर कहकर अपमानित कर हत्या कराने और मानहानि का मुकदमा करने की धमकी दिया गया है। मेरा जन्म दिनांक 6 मई 1955 में ग्राम खलीलाबाद थाना व वर्तमान तहसील निजामाबाद आजमगढ़ में हुआ। पिता कृषि मजदूर चौथी की मृत्यु होने के बाद बचपन से अमिलो थाना मुबारकपुर तहसील सदर आजमगढ़ में पालन पोषण हुआ है। बालश्रमिक के रूप में बनारसी साड़ी की बुनाई करने लगा। लोन लेने के लिए बैंक गया तो जमीन का कागज़ माँगा गया। तब पता चला की न्यायालय नायब तहसीलदार सदर आजमगढ़ मुकदमा नं 298 के अंतर्गत दिनांक 30 जुलाई 1976 को मृत घोषित कर दिया गया था। मान-सम्मान, मौलिक अधिकारों के लिए अनोखे संघर्षों से संघर्ष करता रहा और मृतक संघ बनाकर अपने नाम के साथ मृतक टाईटल जोड़ लिया। लगभग 18 वर्ष में सरकारी अभिलेखों में दिनांक 30 जून 1994 को मुर्दा से पुनः जिन्दा हो गया। अपने साथ-साथ हजारों-हजार धोखाधड़ी से पीड़ितों जीवित मृतकों की हड़पी हुयी जमीनों, मकानों को जिला प्रशासनों से वापस दिलाकर जन न्याय कर मानव अधिकारों की रक्षा किया है। सतीश कौशिक फिल्म निर्देशक फिल्म बनाने के लिए सन 2003 में श्री इम्तेयाज़ हुसैन फिल्म राईटर के साथ घर आये। फिल्म का काम शुरू कर दिए। बार बार बम्बई दिल्ली लखनऊ आजमगढ़ सीतापुर बुलाते रहे। मेरा पूरा परिवार 18 वर्ष से साथ देकर सहयोग करता रहा। कागज़ फिल्म में मेरा लिखा 2 गाना है। संघर्षो की कहानी को तोड़-मरोड़ कर किसान बुनकर की जगह बैंडबाजा वाला बना दिया गया है और लाल बिहारी मृतक की जगह भरत लाल मृतक बताया गया है। मेरे लिए अछूत शब्द का प्रयोग किया गया है। फिल्म एग्रीमेंट की कॉपी बार-बार मांगने पर हीलाहवाली करते रहे। एक बार भी मुझको फिल्म की कहानी नहीं सुनाये, नहीं ही फिल्म दिखाए। फिल्म की रिलीज होने की बात सुनकर फिल्म देखने के लिए कहा तो फिल्म दिखाने से मना कर दिए और एग्रीमेंट की कॉपी फिर से मागने पर नोटिस द्वारा कहा गया की आपके जीवन का सारा अधिकार मेरे पास है। कई वर्षों से कई लोग कहानी मांगते रहे तो ये बार-बार रोक लगाते रहे। मिडिया के सामने भी बोलने से मना करते रहे। श्री प्रवीन सम्पादक टाईम्स ऑफ़ इंडिया लखनऊ द्वारा किताब लिखी जा रही है। उनको भी मना कर दिए है। क्या मैं जिन्दगी भर अपने हक की लड़ाई लड़ता रहूँ? भीख मांगकर दर-दर भटकता रहूँ। परिवार की जिन्दगी को बर्बाद करता रहूँ। मेरे संघर्षों की कहानी का लाभ श्री सतीश कौशिक 100 रूपये के स्टाम पर हस्ताक्षर कराकर बेचकर अपने हवेलियों में ऐश कर तिजोरी भरते रहे? क्या ऐसे ही सत्य घटना पर आधारित ऐसी फिल्म बनती है? जो पूरस्कार के लिए लोग दावा करते रहते है। 7 जनवरी 2021 को रिलीज होने वाली फिल्म कागज़ पर रोक लगाया जाय। अपने मौलिक अधिकारों, मान-सम्मान के लिए चौथा स्तम्भ मिडिया के समस्त अपनी आवाज उठाता रहूँगा। माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष जाकर न्याय की मांग करूँगा
रिपोर्ट - राजन यादव
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