उत्तरप्रदेशसंस्कृतसंस्थान के द्वारा सञ्चालित बीस-दिवसीय-संस्कृतभाषाशिक्षण-
मुख्य वक्ता ने स्वोद्बोधन में कहा कि-
जैसे शास्त्रीय सङ्गीत को केवल वही लोग गा सकते हैं जो अभ्यास (रियाज) करते हैं और समान्य गीतों को कोई भी गा सकता है वैसे ही सङ्गीत जैसी है संस्कृतभाषा। अन्य भाषाओं को तो हम विना अभ्यास के भी सीख सकते हैं, किन्तु संस्कृतभाषा में हमें धातुरूप, विभक्तिरूप और नियमों का रियाज करना आवश्यक होता है। बहुत सी संस्थाएँ संस्कृतभाषा के उत्थान हेतु कार्य कर रही हैं, जिनमें संस्थान का प्रयास सराहनीय है।
संस्कृतभाषा के शिक्षणक्रम में महोदय ने निवेदित किया कि जैसे हिन्दी भाषा को हिन्दी भाषा के माध्यम से, आङ्ल भाषा को आङ्ल भाषा के माध्यम से पढ़ाया जाता है वैसे ही संस्कृत भाषा का पाठन संस्कृतभाषा के ही माध्यम से होना चाहिए।
कार्यक्रम मे उत्तरप्रदेशसंस्कृतसंस्थान के प्रमुख सचिव जितेंद्रकुमार, निदेशक विनयश्रीवास्तव, सर्वेक्षिका श्रीमतीचन्द्रकलाशाक्या, प्रशिक्षणप्रमुख श्रीसुधिष्ठकुमारमिश्र, प्रशिक्षणसमन्वयक धीरजमैथानी दिव्यरंजन और राधा शर्मा उपस्थित रहें। कार्यक्रम सञ्चालन संस्थान के प्रशिक्षक-गणेश दत्त द्विवेदी ने,
धन्यवादज्ञापन सविता मौर्या ने और शान्तिमन्त्र डॉ० स्तुति गोस्वामी ने किया। कार्यक्रम में संस्थान के सभी प्रशिक्षका सभी प्रशिक्षु तथा कुछ दिव्यचक्षु प्रशिक्षु भी उपस्थित रहें। न केवल छात्र, बालक, पुरुष इस कक्षा में पढ़ सकते हैं, अपितु सभी क्षेत्र सभी आयु वर्ग के लोग अब संस्कृतभाषा को सीख सकते हैं। तर्हि शीघ्रं पञ्जीकरणं कुर्वन्तु- https://sanskritsambhashan. com/
डॉ० श्वेता-बरनवाल
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