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उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान लखनऊ एवं भाषा विभाग उत्तर प्रदेश शासन द्वारा आयोजित 20 दिवसीय संस्कृत भाषा शिक्षण कक्षा में दिनांक 15 अक्टूबर को बौद्धिक सत्र का आयोजन किया गया। बौद्धिक सत्र की आरम्भ वैदिक मंगलाचरण से भास्कर मिश्र के द्वारा की गई। सरस्वती वंदना कविता तिवारी के द्वारा किया गया। कार्यक्रम के मुख्यातिथि   डॉ० यीशनारायण द्विवेदी (असिस्टेंट प्रोफेसर  सदानन्द महाविद्यालय छिवलहा फतेहपुर) का स्वागत सहसमन्वयक नागेश दुबे जी के द्वारा तथा संस्थान की प्रशिक्षिका पूजा बाजपेयी के स्वागतगीत से किया गया।  मुख्य-अतिथि ने बताया की संस्कृतभाषा राष्ट्र का निर्माण करती है। आग्रह करते हुए कहा कि संस्कृत भाषा जन-जन की भाषा हो, क्योंकि समग्र प्राचीन साहित्य संस्कृत में हीं है साथ ही यह एक ऐसी भाषा है जो लोक  कल्याण की शिक्षा देती है। अतः संस्कृत साहित्य को समाज में लाने के लिए संस्कृत भाषा का ज्ञान अत्यंत आवश्यक है। साथ हीं यह राष्ट्रीय एकता का पाठ पढ़ाती है। संस्कृत भाषा वर्तमान समय में मानव जीवन एवं विश्व कल्याण के लिए नितांत आवश्यक है।  मुख्यातिथि ने संस्कृत भाषा के महत्व को प्रकाशित करते हुए प्रत्येक जन जन के लिए आवश्यक बताते हुए कार्यक्रम में उपस्थित सभी को अधिक से अधिक संख्या में पंजीकरण कराकर स्वयं और अपने स्वजनों  को उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान लखनऊ द्वारा आयोजित संस्कृत भाषा शिक्षण कक्षा में अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया ।कार्यक्रम के मध्य में प्रशिक्षुओं (ऋषिकेश, अर्चना और शिवा) के द्वारा अनुभवकथन किए गए  और जाह्नवी पाण्डेय आदि ने संस्कृतगीत प्रस्तुत किए। इस कार्यक्रम में संस्थान के अध्यक्ष डॉ वाचस्पति मिश्र, पदाधिकारी दिनेश मिश्रजी,  पर्यवेक्षक जगदानन्द झा, प्रशिक्षण समन्वयक धीरज मैथानी, नागेश दुबे और दिव्य रंजन महोदय आदि उपस्थित रहें। बौद्धिक चर्चा का संचालन और तकनीकि सहयोग संस्थान की प्रशिक्षिका डॉ० श्वेता बरनवाल के द्वारा, स्वागत एवं परिचय  सह-समन्वयक नागेश दूबे के द्वारा, धन्यवाद ज्ञापन  शिव प्रताप मिश्र के द्वारा, शांतिमन्त्र प्रशिक्षक गणेश दत्त द्विवेदी के द्वारा और सूचना अनीता वर्मा के द्वारा दी गयी।

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- डॉ० श्वेता बरनवाल

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